तीन अक्षरों का है तू
पर हजारों है तेरे नाम ज़िन्दगी
नाजाने क्यों आज दरबदर हो रहा है
बदनाम ज़िन्दगी....
ज़िन्दगी एक उलझी सी पहेली है
दर्द और गम जैसे तेरे ही सहेली हैं
जिसने समझ लिया तुझे
उसके लिए खुशियों का मेहका बागान है तू
और जो उलझके रह गया तुझमें
उसके लिए सिमटा हुआ एक कबरस्थान है तू....
पहली सांस से आखरी मुस्कुराहट तक जो वक़्त
चुराया था वो पल है तू
खुशियां और गम जहा से बेहती है वक़्त वक़्त पर
वह सूखा परा हुआ नल है तू.....
बिना टिकट के जो कभी किया था वह सफर है तू
जिन रास्तों पर बस चल कर भटक जाने का करता हैं दिल
वह अनजान डगर है तू....
मेरे पापा के आंखो मै जो देखा है मैं
वह ख्वाहिशों से जगमगाता हुआ सेहेर हैं तू..
वह वक़्त भी याद है हमें
जब सब अपने हो गए थे खिलाफ हमारे
कई रातें गुजारे थे हमने भी
घड़ी के सुई निहारे...
शायद जो कभी खाई थी मा के हाथो
वह सुखी रोटी और आचार हैं तू
या को पड़ी थी बचपन मै टीचर्स से
वह प्यार भरी डंडे की मार हैं तू....
गिरा कर जिसने चलना सिखाया
खुद रूला कर जिसने हसना सिखाया
शायद वह मा की ममता और
पापा का प्यार हैं तू...
बचपन गुजरा इस सोच मै की जब
हो जाऊंगा बड़ा
तो ज़िन्दगी गुजरेगी मौज में
जवान होते ही पापा ने भी केह दिया
बेटा भीड़ बहत हैं
भर्ती हो जा फौज में....
देखो ना आज मैं भी लग गया हूं
ज़िन्दगी की होड़ में
सारे अरमानों को मार के आज मैं भी
लग गया हूं कॉम्पटीशन की दौड़ में...
घड़ की रोक टोक से तो आजादी मिल गई है
पर अब खुद में कैद सा हो गया हूं मैं
ना जाने ज़िन्दगी के कौन से मोड़ पर
खो गया हूं मैं...
आते हैं आंसू पलको तक पर रो भी
नहीं पाता हूं में
नींद तो बहत आता है रातों में
मगर सो भी नहीं पाता हूं में
नजाने कैसी ये ले रही इम्तेहान ज़िन्दगी....
अरे जहा मरती हैं रोज लाखों ख्वाहिशें
ऐसा ये समसान ज़िन्दगी है
और लोग कहते हैं आसान ज़िन्दगी है
हर तरफ एक उदासी का बादल छाया हैं
हंसते हुए आज ज़िन्दगी ने भी
मेरा मजाक उड़ाया हैं...
ज़िन्दगी का असूल में आज तक समझ नहीं पाया
की हंसता हूं तो आकर रूला देती हैं
सोता हूं तो आकर जगा देती हैं
अब गिरता हुआ तो मैं
खुद ही उठ जाता हूं
हर रोज ज़िन्दगी से लड़ने मै
निकाल जाता हूं...
मंजर हो सकता है बुरा
ज़िन्दगी नहीं
वक़्त बुरा हो सकता है
ज़िन्दगी नहीं
गम के अंधेरों को चिढ़कर
खुशियों की सेहर होगी मेरी भी एक दिन
बस इसी उम्मीद मै हर रोज़
उठ जाता हूं...
आंखिर में बस यही कहना चाहूंगी कि
हा हैं ज़िन्दगी मुश्किल मेरे दोस्तों
पर तू कर जाए कुछ ऐसा
तू बैठा हो चुपचाप और
बोल जाए कामयाबी तेरी सब कुछ
तो तेरा वह मुकाम ज़िन्दगी है
की तू पड़ा हो बिस्तर पर और
सामने हो मौत तेरे खड़ी
आ जाए तेरे चेहरे पर वह बेखौफ मुशकान
तो वह मुस्कान ज़िन्दगी हैं
बस इतनी सी तेरी पहचान ज़िन्दगी हैं
हर लम्हे को जीना सीखो
हर जख्म को खुद ही सीना सीखो
कई बार मंज़िल मुसाफिरों को
नहीं मिल पाती
और जो करना हैं आज करो यारो
क्यों की मौत अक्सर बताकर नहीं आती...
Beautifully written!!!
I'm always fascinated by thoughts on life. And this is really a very beautiful description of life. 👍
Wow!! Really touching!! I must say I honestly didn't think of life in that way.. Keep it up👍👍