जय जवान, जय किसान .....
लड़ते वो आसमान से,
लड़ाई करते हैं भी वो ज़मीन से ;
देशद्रोही न कह देना अब इन्हें,
देख लड़ते उन्हें बीते महीने से ।
के बैठे हैं कुछ बाबु-लोग शायद महलों में ,
हक़ इनका इनसे छीन ने ।
गलत अगर यह है तो ;
इन्हें सही बात तुम बताओ न ।
बात तो करो कम से कम !
मिलने इनसे तुम आओ न !
चंद दिनों की नहीं लगती है यह लड़ाई अब ।
न झुकने के इनके इरादे हैं लग रहे ।
कमज़ोर समय के साथ ,
पढ़ यह जाएंगे ,
न रहना इस ख्वाब में ।
की लड़ना ही है सीखा है ,
इन्होंने बचपन से है ;
कभी ज़मीन , तो ,
कभी आसमान से ।
भूल न करना यह सोचने की ,
की दब जाएगी बात यह आसानी से ।
कहते हो तुम ,
की जवानों का सम्मान हो करते तुम ।
तो क्यों इन्हें किसानों से हो लड़ा रहे ?
क्या भूल गए हो तुम वो नारे भी ;
" जय जवान, जय किसान " के ??
नाराज़ है वो तुम से ,
जा कर उन्हें तुम मनाओ न !
अनपढ़ है कुछ,
तो कुछ है कम पढ़े लिखे ;
उन्हें अब लिखा-पढ़ी में,
तुम फ़साओ न ।
कुछ तो होगी उनकी भी मजबूरी न ,
के सर्दी, और महामारी में भी है,
वो हरताल पर , डटे खड़े ।
अब नजर अंदाज मत करना इस बात को ,
की उनकी कड़ी मशक्कत का,
है यह फल की ,
तुम्हे खाने को दाने थाली मैं दिख रहे ।
की बिना किसान की मेहनत के भला ?
क्या खेत में है फसल सही से उग सके ?
न रहना कोई गलत फहमी में तुम !
न दया अब है उन्हें चाहिए ।
जो हक़ है उनका बस ,
उसके लिए हैं, वो लड़ रहे ।
कमज़ोर न, समझ लेना कि ,
कभी ज़मीन , तो ,कभी आसमान से ,
वो नाजाने है , कब से हैं लड़ रहे ।
पसीने और लहू से वो
खेतों को है सीच रहे ।
~ FreelancerPoet .
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